Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय अब सुधि ले लो ओ वनबरी

अब सुधि ले लो ओ बनवारी ,तरसी है अंखियां रो रो हमारी ,अब सुधि ले लो ओ बनवारी ।
छोड़ा है जबसे मथुरा सूखे है ब्रज के सारे बाग थे,रोते हैं बछड़ा गैया, रोते हैं पपीहा कोयल कागरे,सूख गई है जमुना बिचारी ,अब सुधि ले लो ,,

प्रीत तुम्हारी देखी देखा तुम्हारे मुख का मोड़ना ,तोड़ ही डाला ये दिल खेल नही दिल का तोड़ना ,कब तक जिएंगी हम ब्रजनारी ,अब सुधि लेलो ,,,,

जल्दी से आओ तुम तो दिल के हमारे भगवान रे जो तुम न आओगे मोहन निकलेंगे हमरे तन से प्राण रे,"सरिता" है भगवन शरण तिहारी ,अब सुधि ले लो ,,,
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर 

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5 Comments

बहुत ही सुंदर

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Raziya bano

15-Nov-2022 05:30 PM

शानदार रचना

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Sachin dev

15-Nov-2022 03:24 PM

Well done ✅

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